इस हमले की न सिर्फ पूरे देश में बल्कि विदेशों में भी घोर निंदा की जा रही है और कई देश भारत के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। बता दें कि पुलवामा हमले में शहीद जवान देश के अलग अलग राज्यों के रहने वाले थे। इन दो जवान बिहार के रहने वाले भी थे। इन जवानों का नाम था रतन ठाकुर और संजय कुमार सिन्हा। रतन की पत्नी गर्भवती है और होली पर उसके आने का इंतजार कर रही थी। वहीं संजय इस बार छुट्टी में अपनी बेटी का रिश्ता पक्का करना करने वाले थे लेकिन ऐसा हो न पाया।
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भागलपुर के लाल रत्न ठाकुर |
श्रीनगर जाने की बात कही थी लेकिन पहुंचे नहीं: रतन ठाकुर भागलपुर के कहलगांव के रहने वाले थे। रतन के पिता निरंजन ठाकुर ने बताया कि दोपहर डेढ़ बजे रतन ने पत्नी राजनंदनी को फोन किया था और बताया था कि वो श्रीनगर जा रहा है और शाम तक पहुंच जाएगा। लेकिन शाम को उसके ऑफिस से फोन आया और रतन के मोबाइल नंबर (कोई और नंबर भी इस्तेमाल में हो तो) के बारे में पूछा गया। जब ऑफिस के नंबर से फोन पर रतन का मोबाइल नंबर मांगा गया तो शक हुआ और टीवी ऑन की। टीवी पर खबर देखकर दिल बैठ गया। आनन फानन में कमांडर को फोन किया तो उन्होंने बताया कि अभी कुछ कंफर्म नहीं है।
गर्भवती पत्नी को होली पर घर आने का किया था वादा
गर्भवती पत्नी को थी होली में घर आने की उम्मीद: रतन के पिता ने बताया कि रतन का एक चार साल का बेटा है, साथ ही उनकी बहू गर्भवती भी है। एक दिन पहले जब रतन से फोन पर बात हुई थी तो उसने कहा था कि इस साल घर पर होली मनाउंगा। वहीं छोटी बहन की शादी को लेकर भी बात हुई थी और रतन ने पिता से कहा था कि आप चिंता मत करो मैं सब अच्छे से करवा दूंगा। बता दें कि रतन की मां का निधन भी 2013 में हो गया था। इसके साथ ही पिता ने कहा कि मैं दूसरा बेटा बी भेजने को तैयार हूं लेकिन पाकिस्तान से बदला लेना है।
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रतन के चार वर्षीय बेटे कृष्णा |
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पापा ड्यूटी पर गए हैं, सबको आप बोलने के लिए कहा है
रतन के चार वर्षीय बेटे कृष्णा को पता नहीं था कि उसके पिता शहीद हो गए: रतन के पिता निरंजन ने बताया कि उनके पोते कृष्णा को पता ही नहीं था कि पिता शहीद हो गए। जब उससे पिता के बारे में पूछा गया तो उसने कहा- पापा ड्यूटी पर गए हैं।
रतन के पिता बोले-एक ही तो बेटा था, वह भी देश के लिए शहीद हो गया
बहुत जतन से रतन को पाला था। मजदूरी की, जूस बेचा...कपड़े की फेरी की। उसे पढ़ाया-लिखाया। 2011 में सीआरपीएफ में भर्ती हुआ। पहली पोस्टिंग गढ़वा में हुई। धीरे-धीरे दुख कम होने लगा। एक ही होनहार सपूत था मेरा, वह भी भारत माता की रक्षा में शहीद हो गया। अब किसके सहारे जीएंगे।
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